
जिन्देगी का हर पल दरिया से कुई कम् नेही। जब आदमी दिन गुजरते उस पल लेकर थोड़ा थोड़ा रेत डालके भरने से दिन चलाजाती हे पर परमायु हात से निकल जाति हे। उसी पल को आंखों में रख के आछे काज करने से दिल में स्थान मिलती है उर साथ में सकुन मिलता है।परन्तु आदमी जब खुदगर्ज बनजाता हे। इनसानियत के नाम में धप्पा मानवजाति हे।
सकुन ढुन्डने से मिलति हे किया? जब आदमी नियत कर्म आछि ना करे! जिन्देगी में फुल बरसाती हे किया? जब हम सोच बिचार आत्म ज्ञान चमचमाकति नेहि बनायेन्गे?दिन की सूरज जेसे उज्ज्वला ले आता हे उसी तरा रात की चांदनी सकुन कि ज्योति प्रकट करती हे।
सायेद उसलिये केहते हे :- जिस आसमान दिन दिखाई देता है उहि आसमान रात भी दिखा के निद आंख में भर के सोने केलिये बक्त देती है।
उस्तरा आदमी कर्म उज्जवला कि तरा करे तो रात कि सकुन निद जिन्देगी लकीर मैं लिखती हे।
उ सब कर्म में बेतिक्रम होने से लालची बन के पाप कि घाड़ा बनाने में बक्त खत्म कर के मत जिते जी दिखता है।
पुरषतम् गाँव एक हराभरा बण पहाड़ नदी झरने में बहत सुन्दर दिखाई देता है जैसे कि रव ने हात में बनाई हे सुस्त जिन्देगी गुजारा करन्गे उर प्रेम में रेह के। सीता उर उनके पति श्याम रेहते थे उसी गांव में। क्षेती बाड़ी में जितने पैसा कमाते थे बेटी पुष्पा को लेकर बहत सकुन से दिन गुजर जाता था।
उसी गाँव के जमीदार भोजमोहन दाश जो हर काम में पंचायत बसा के न्याय देते थे। गाँव में ज्यादा कोई पढ़े लिखे नेहि थे जो भी पढ़ते हे बाहार जाके घर बसालिये! उन सबके जमिन भोजमोहन दाश के पास गिरवी रखते थे। जितनाभि रुपया देते थे ब्याज के साथ सूध समेत लेन्गे बोल के साधा कागज में सई करलेते थे। जो लौग बक्त पे ना लटाए जमिन् जमीदार खुद के नाम में कर लेने में कुई हिचकिचाहट नेहि करते थे। उ लोग बाद में लोट के मान्गनै से भोजमोहन बोलते थे। तु खूद ही देखलेए उस समय पे ब्याज के साथ सुध समेय ना लौटाने से उ जमीन मेरे नाम में हो जाएगा। अब बोलने से कन सुनेगा? तु इनकार केसे करेगी ?कन सुनेगा?
गरीब आदमी हमेसा रो के बोलते है ऊपरवाला हिसाब करेन्गे उर अमिर आदमी के साथ लढ़ने में जितना रुपया खर्चा करेगा उसी में दुसरे जागे पे खरीद लेन्गे सोच के छोड़ते हे। उहि छोड़ना उन सब केलिये उस आदमी से कैसे नकाप पेहन लेते किसिको पता नहीं चलती हे। आदमी के नाम में हैवान हो जाते उर आदमी के खुन चुस लेते हे।
सिता के तवियात खराब होने लगी उस तबियत लेकर पति के साथ मिल के काम करते हैं परन्तु ज्यादा तबियत बिगड़ने से लाखों छुपाने कुसिस् करने से दिखाई देति है। श्याम जान के बहत अन्दर ही अन्दर रोने लगे! अब किया करुन्गा? छोटी बेटी पुष्पा के देखभाल करना बहत मुस्किल् होजाता है! किसको बताएन्गे दिल की हाल!
इलाज करने केलिये रुपया जहाँ पे जाहाँ था एकठा कर के लेगेए। इलाज करने केलिये जितना रूपया खर्चा होना था कम हौआ। तब कहाँ से इतने रुपया लेन्गे ब्याज पे कन देगा? उहि सोच में रेह के जमीदार के बात याद आई ।पत्नी सीता केलिये श्याय बहत चिन्तित रहने कि बजाये जमीन जमीनदार के पास गीरबी रखे।जल्द सीता सुस्त हो जाने के बाद काम कर के पैसा जोड़ जोड़ के जमीन छोड़ालुन्गी। उनके सर्त पे राजी हो के हाँ करने के बाद उसी तरा भोजमोहन दाश कागज पे सइ करलिये।
सिता की तबीयत किया ठिक् होन्गे? अस्तरप्रचार के समये उन के मत होगेई। पत्नी बापस नेहि आए कि रूपया बापस नेहि आई। मुर्दा पत्नी को लेकर जब घरको लोटे तब क्रिया कर्म करने केलिये पास में उर रुपया नेहि।पोड़सोन सब उधार में जो रुपया दिये स्राध तक सब काम हो गेया! फुल सि बेटी पुष्पा को कैसे जिन्दा रखेन्गै मा के बगैर अब खाएन्गै किया?
जमीनदार के बात याद आई अगला मौसम में क्षेती बाड़ी कर के करजा चुका दुन्गा अभी घर की घर की जमीन गिरबी रख के ले आउन्गा। भोजमोहन दाश सब सोन के जमीन गिरबी रख के रुपया देदिये। मौसम आने के बजाय श्याम क्षेत को निकले काम करने केलिये। सुने के फसल जब उगने लगी तब श्याम बहत खोस हो गेये। धान गेहो काट के जब घर पे ले आएं उसि बक्त लोग लगाके सारे धान गेहो चुरा के लेगेये !ढुण्डनै से मिलेगा कैसे? जमीनदार ने खुद के अमार में रख दिये !तब जा के सकुन के साँस लिये अब देखोन्गी घर क्षेत की जमीन जायदाद की कागज कैसे छोड़ा के ले जाएगा?
श्याम अनाज घर में ना रहे देख के माथे पे हात देके बैठ गये! नन्हि सी बची को किया खिलाओन्गा? जमीनदार के करजा कैसे चुकाउन्गा? रात ढल के सुभा होने से पहले श्याम के जिन्देगी अमबाश्या कि रात होगेया! जमीनदार आदमी भेजदिये श्याम को बोलाउ आज उनके सुध समेत ब्याज देनेकी दिन हे।
जमीनदार की आदमी देख के श्याम समझ गेये भेज दिये लेने केलिये। सारे बात सुनाने के बाद सिर्फ बोले में किया करू? तुने खुद लिख के दिया हे बक्त पे ना देने के बजाय उ घर जायदाद सब मेरे नाम में हो जाएगा! तुझे आज सब छोड़ के जाना पड़ेगा!
उनके मुंह पे सोन के उ लब्स कहाँ जाउन्गी जमीन आप ले जाएन्गे तो मैं उर मेरे बेटी खाएन्गे किया? जिते जि मर जाएन्गे! भोजमोहन के जमीन पाने कि निशा इतना होगेया बाप बैटी को जिते जी मारने कि पुरा तैयार कर दिये गाँव को कानो कानो तक टेर नेहि पाये। श्याम ने पाउ पकड़े गिड़गिड़ाए पर कुछ नेहि हुआ। घर जमिन जमीनदार सब कब्जा करलिये।
आदमी मरने के बाद ढाई हात जमीन में राग हो जाती हे। जितने आराम में रेहने से भी छे खण्ड बांस में श्मशान जाते हैं। फेरभी इतना गीर जाता हे दुसरे के सूख कांटे की तरा शरीर को चुकता है। दूसरे से लूटपाट करने से सकुन पाता है। आखिर में किया साथ में लेकर जाते हे? फेरभि पाप की घड़ा पुराने मैं कुई कसर नेही छोड़ते!मरने के बाद में भी आदमी थुक्ते हे। लालची के नाम में हैवान होते हैं।
आछे कर्म करने में शरीर अन्त होने की बाद में भी दिल में जिन्दा रखके पुजा करते आछे कर्म करने से।सोचने से मिठि झिल् बन जाते हे। उहि कर्म अमर कर देती है।कितने सोचते हे?
शान्ति लता परिड़ा
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