
पृथिवी पर जब नर जन्म लिए तब नारी जन्म लिए संसारो को परिपूरक करने केलिए। नियम कानुन में सारे बन्धन को सृष्टि किया जेसे की स्वधर्मत्वागी कुई ना बने। हर घर्म हर बक्त सुकर्म नेहि बनती ।स्थान कालपात्र घूमरा कर देता हे।
फुल मेहकने से भ्रमर आता हे मधुपान करने केलिये। ऐसे ही लड़की बडे़ होने के बाद मा बाप कि ज्यादा परिसानी होती हे काहाँ पे बिदा करेन्गे। फिर आछे घर ढुण्डेन्गे शशुराल बाले आछे हो तब हमारे लड़की चेन कि सांस लेगी। नेहि तो ज़िन्दगी बरबाद हो जाएगी। एसे हिँ कितने सारे सोच मा बाप को अन्दर ही अन्दर भार डालती है।
शिधेपुर सेहर में आचार्य दाश उर पत्नी सुनिता दाश रहते थे।उनके एक बेटी शिमरन् बहत लाड़ प्यार में बड़े किये साथ में एक चिकत्सक होगेई हे। मा बाप कि एक सोच बेटी बड़ी होगेई शादी कराऐन्गे ।उसी सेहर में रघु चौघुरि पत्नी बिमला चौघुरि उनके बैटा संजय चौधरी रेहते थे।उ एक इंजीनियर होने के बजाये प्रोजेक्ट काम करने केलिये दुर दुर जाना पड़ता था। पर मा बिमला धार्मिक बजाये बेटा बहत परिशान में रेहते थे। इतन नियम कानून कितने मानेन्गे?
शिमरन केलिये संजय के प्रस्ताव जब आई तब पिता आचार्य दाश देख के हां करदिये।दामाद के बारात को सेही इजत के सथ बेटी बिदाई किये। एक बेटि जब बावुल के घर छोड़ के आती हे दो कुल के मान मर्यादा रखने कि बात दिल में ठान लेती हे। उर प्यार के पलो में पति को बान्धने के साथ हर बक्त उसका साथ निभाने कि कसम खाता हे।तब जा के घर संसार बानाती हे।
शाश भी एक जमाने उ बहू थे उनके जमाने में जो चल राहा था हर बक्त उहि चलेगा उ तो हर बक्त नेहि होता है। पति को इजत देना सेही बात है प्यार देना जाहिर हे। कभि कभि जिन्दैगी के रास्ते में हर मुड़ बक्त दिख् के फेसला करने में ज़िन्दगी अनमोल बन जाती हे।एसे ही शाश शशुर पति लेकर शिमरन् घर करते थे साथ में हस्पाताल कि काम चलता था।
शिमरन् के हस्पाताल में मरीज के साथ बहत मिलते झूलते थे कियु के रुपिया कमाना के साथ दबाई जितना जल्द काम ना करेगा उस से ज्यादा रोगी को दिल के करीब हो कर इलाज करने से दिल के सुस्त रेहेकर जल्द सुस्थ हो जाएंगे मरीज। उहि बिघबघ चलता था।
पर शिमरन् पुजा के घर में नेहि जाते थे ज्यादा बक्त मरीज के काम में भाग् दौड़ उर घर के काम लिपटाना जरुरी होता था। शाम बिमला नकरि छोड़ के बहू घर में रेहे उई शोच उनको अन्दर ही अन्दर सोचते थे। जगते सोते में भि! एक दिन करवा च्कत् ब्रत पड़ा शाश पुरा जुनून के साथ बोल दिये आज तुमारा हस्पताल जाना बन्द हे। मेरा बैटा संजय के लम्बी उमर केलिये तुमे ब्रत रखने होगी। चान्द देख के पति को देख के उपवास भान्गुगी।
शाश के खुसि केलिये बुलि माजी आप परिशान मत होईए कियुकि शाम को जब घर लोटोन्गी तब उपवास तुड़ुअगी फिलाहाल अभी मैं हस्पताल जाउन्गी कियुके मरीज मेरे राहा देखते रेहन्गे?शाशा ने बौल दिये शिमरन तुमारा पति से बड़कर मरीज हे किया?माजी बाड़ा छोटा काहाँ पे आई? मरीज हर दिन मत से लड़ते हे उनके जिन्देगी रखना कोई शाधना ब्रत से कम हे किया?
ऐसे ही बात उपर निच होने के बक्त शिमरन् के पाश कल आया उ कल तुरन्त शुन के किशिको कुछ् ना बताए पलक् छपने की अन्दर से उ घर से निकल गये। उ कर्तु देख के शाश बोलने लगे एसे संस्कार उनके घरबाले ने सिखाए ।आज के दिन में पति से बड़ कर हस्पताल के मरीज हो गये?आने दो मेरे बेटे को! सारे बात बोल कर उन के मा बाप के बुलवाकर इस बात को कुछ फेसला करने टडेगा!पत्नी बहू पे एसे गुसा होना देख के रघु चोघुरी बोले !कियु सभजने की कुसिस नेही कर सकते हो बिमला ?
आज काल जमाने कि लड़का लड़की हे उ सब। साएद कुछ जरुरी कल आया होगा शिमरन् चलागेया। थोड़ा इन्तजार करलो उ जब लटेगा सारे बात बताइगी कियु गैया किया हुआ?पति के ऐसे बात सुन के अन्दर गुसा रख के बिमला जी चुप होगेये।
कुछ देर बात शिमरन कल किये शाश् के पाश माजी संजय अभी ठिक् हे। बिमला जी शोन के बताना मैरा बेटे को किया हुआ हे? शियरन् शुन के बोले माजी घर को लटने बक्त उनके साथ हादसा हुआ मैने अस्तरप्रचार कर दिये उ अभी ठिक् हे हमारे घर में सारे सुविधा हे उसलिये संजय को लेकर आती हूँ। साथ में भी मा वाबुजि आरेहे हैं।
आचार्य दाश, सुनिता दाश दामाद संजय उर बेटी शिमरन् आके चकट पे देख बिमला जी रो रैहे थे। शमदन शमघी आ के बोले कियु ऐसे करते हो बेटा सेही सलामत घर लट आई। उर परेशान होने की कुई बात नेही। बिमला जी सूनिता के हात पकड़ के बोले मुझे माफ कर दिजिये बेटे आनेके बाद बहू के बारे में बोलने कि सुचि थी। उर आप सब बेटी को कैसे संस्कार दिए हे उहि बोल के कोश राहा था।
मेरे बात मान के उ आज रुक जाता मेरे बेटे को ईस हाल में नेहि पाती! जो सुहाग रहने केलिये पति को जिन्दा रखने चला गया उस से बड़ा पवित्र पतिव्रता नारी कन हो सकता है। शशुर रघु चौधरी बोले बिमला तुम कैसे भुल गेऐ बैटी जन्म होने से मान मर्यादा होने के साथ उ लाज भि रखती हे।
बेटी शिमरन् तुमरा प्यार हमारा जीवन दान मिलगेया। उ सब देख के संजय हस राहा था। आसमान के चान्द के शीतल जोती से ज्यादा प्यारी मेरा शिमरन् है। शुशिल नाजुक पतिव्रता भी है।
आखिर में एसे ही बहत सिरे घटना हमें कभी कभी सोच के फेसला दिमाक जरूरी डालना पड़ती है। उर सकुन की साँस लेनेकी मोहका देती है। उर जिन्देगी का फुल खुसवो निखरति है तन बदन में। जिन्देगी अनमोल हो जाती है।
शान्ति लता परिड़ा
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