
पृथ्वी में हर प्राणी बसबास करते है उर आपस में प्यार बिश्वास लै के जिन्दैगी गुज़रते है। गम को खुसि में बदलने कैलिये हर बक्त कुसिस करता है बल्कि जेसे अन्दर में सकुन सै रहे उर आखिर में आछे कर्म कर के चेन से ईश्वर के पास चला जाए।
कभी कभी उ सोच सब नेहि रखते कुई खुसि से जिन्देगी बिताए उसको कैसे नीचे गिराये उहि कुसिस में ज़िन्दगी का मूल्यवान बक्त निछावर करता हे। कहते है खुद आगे नेहि जाएन्गे जो जाते हे उनके कामियाप देख के जल् के मकड़ी के जाल बिछाने के तरा बिछाके जलन के आग मे खो के खो देते हे।
सामपुर एक छोटा सा गाँव में हरा भरा पेड़ पोघा झिल्ली में अति सुन्दर है। राम सिं उनके पत्नी सीता सिं एक छोटा बचा परेश था। तिनो मिलने से जैसे हसता खिलता एक फुल कि बागान दिखाई देता था। पड़ोस में सुरेश राजपूत उनके पत्नी स्नीग्धा राजपूत थे। बेटी तुलसी एक थी परन्तु बहत दुबली थी। पर बचपन में ज्यादा पढ़ने की सक् के साथ प्रकृति छबि आन्कना बहत लगाव रखी थी ।
सिं उर राजपूत दोन के परिवार में बहत सा प्यार था। जो काम उत्सव मनाने कि दिल करते थे मिल के करते थे। आस पोडो़स में देख के खुसि होते थे कहते थे सगे भाई के तरा रहते हैं शरीर अलग पर आत्मा एक रख कै कितने खुसि से झुमते हे। परेश उर तुलसी दोनों इतने आपस में लढते थे माने लाखो सम्झाने से समझते नेहि दोन के कान मरोड़ के लाल आंख करने पड़ती थी। उमर के साथ साथ दोनों बढ़े पढ़ाई करने केलिये अलग सेहर गेये। उहाँ पे रेह के पढ़ने में कब बक्त गुजर जाता था दोनों परिवार को पता नेहि चला।
उनके पास पोड़ोस में जगन् नाम कि एक लड़का था जो दूसरे को मुसीबत में पहचांने केलिये कुई कसर नेहि छोड़ता था। कहते हे जहां पे मिठि फल पकती रेहता हे पास में खराबी फल रेहता हे। पर पेड़ को कन्कण मारने से मिठि फल सन्तोष देने के जागे खराबी फल सड़ जाता हे। परन्तु पेड़ को कन्कण के प्रहार सेहे के मजबूत होता था।
तुलसी छबि आन्कने की सक ज्यादा हे गाँ गाँ घूम के तसबिर बनाती थी। एक दिन तुलसी की रूप योबन देख के सादि करने केलिये दिल में ठान लिया।पर जगन् जिस तरा लड़का हे आस पास गाँ सब जानते थे। कुई मा बाप कैसे फुल जैसी बेटी को एक ऐसे लड़के के साथ सादी कराके बेटी को मत के मुहँ पे ढकेल देन्गे?
तुलसी ना पाने कि बजाए तुलसी के इजत लूटने से उ किसिके हो नेहि पाएगा! निच हेवान की सोच किलिये कितने सारे लड़की मत के मुँह पे जिन्दैगी निछावर हो जाते हे। उ हर बक्त मोहोका ढोण्ड राहा था। ऐसे सोच के उ एक सुनसान रास्ते ढुण्ड राहा था।तुलसी परेश हमेसा एक साथ उठनाबेठना करते थे। एक जरुरी काम केलिये परेश बाहार गैया। मा बावुजि काम में बाहार गेये। उन सबको सबारि में बेठा के लटने बक्त जगन रास्ते में मिला!
उसका याद आगेया कैसे सादी कराने केलिये उनके घर इन्कार किये थे। उ हैवान के सोच लेकर जल कर तुलसी को उठा लिया। उस बक्त परेश उसके जररत् कागज छोड़ देने के बजाय ना जा के लोटा। तुलसी को ना दिख के परेश की बात याद आगेया! कुछ करने से पेहेले जा के तुलसी को छोड़ाकर लेआया परेश!उसको थाने में छोड़ दिता।
आदमी ना पाने कि गम को हेवान रूप देने से आछा खुद में ऐसे गुन रखे जो दूसरे निछावर होने कि सोचेन्गै उ ख्याल कभि ना रख के जल के जलन के कीड़ा बनके हैवान होते! एसे आदमी कैसे सुख पाएन्गै? दूसरे ज़िन्दगी नर्क बना देते हे।
कहते हे फुल कोमल से नेहि मेहक गुण से दिल में रेह के पुजा लेता हे।
परेश तुलसी को छोड़ा के सादी करलीया दोनों परिवार सुख से जिन्देगी गुजारे।जेसे सूरज को काली बादल ज्यादा बक्त छुपानेहि पाता उसितरा बुरे बक्त हर पल नेहि रेहता हे। थोड़ा हिमत रखने से सारे मुसीबत टल जाता हे। खुसि कि पल आन्गन में खिल्ता हे।
शान्ति लता परिडा़
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