
मनुष्य जन्म लेने बक्त सब कुछ पाने केलिये बहत दिल में अरमान रखते है। जितने बड़े बड़े होते है उतना ही स्वार्थ में आंख चिपक् के सारे चिज में हिस्सा ढ़ुन्णता है। उसलिये काम क्रोध मोह माया में बंध के दुःख ही खरिदता हे। खून खराबा कर के हासिल करता है आखिर में किया होता है? सब कुछ छोड़ के सेस यात्रा में अकेला जाना पड़ता हे।फेर्बि हिस्सा लेने का भूत शर से निकलता नेहि।
आदमी जब मा के कोक से निकल के पृथिवी दिखा रोने लगा अन्तर आत्मा से बोलने लगा ! मा तेरा कोक में रेह के जितना सकुन मिल राहा था। धरती में पेएर रखने बक्त रोने पड़ा।कियुके पता है मरने तक हर बक्त संघर्ष करने होगा नेही तो ज़िन्दगी जिन्देगी नेही हो पाएगा।
जबलपुर एक छोटा सा गाँव हे।हरा भरा गाँव में झरने, पेड़,पोद्धे,कोकिल,जानवर भरा अति सुन्दर गाँव है। प्रेम कुमार शतपथी उर उनके पत्नी प्रिया शतपथी थे। शादी बहत साल हो गेया एक बचा पैदा नेहि होने का बजाए दोन हमिसा दुःखी रहते थे।प्रिया हमिसा प्रेम को बोलते थे हम किया सन्तान कि सुख नेही मिलेगी!
सान्तान होने से बूढ़ा पे हमारा देख भाल करेगा पर उलाद के बगेर बूढ़ा पे कि तो दुर की बात हमारा नारी जन्म सार्थक नेहि होरेहि है! जब तक एक नारी मा बनती नेहि उनकी जिबन सार्थक नेहि होती।प्रेम कुमार बीबी को होसला दे के बोलते हैं देखोगी एक दिन ईश्वर हमारा पुकार जरुर शूनेन्गे। ऐसे ही कुछ दिन गुजरने के बाद ईश्वर उनपे क्रिपा करके दो बेटा दिये। बेटा राम बड़ा उर छोटा शाम। दोनों को देख के घर में चार चान्द लगा।
राम शाम बड़े हो के आपस में हमेसा लड़ते थे। साथ में पढ़ाई करते थे। पिता प्रेम कुमार आपस में लढ़ना झगड़ना को बुद्धि प्रयोग कर के मिटाते थे। दो बेटा आखिर में नकरि किये ।मा बाप सोचे अब दोन जिमेदार हो गये शादी करादेन्गे। लड़की चुन के दोन को सादि किराये।
जहाँ पे नकरी कर रेहथे बीबी को साथ में लेगेये। मा बाप सोचे इस उमर में पास नेहि रेहेन्गे तो किस उमर में रेहन्गे? कुछ दिन बाद घर में छोड़ जाएंगे। परन्तु उनके सोच सोच में रेहगेया। प्रारम्भ में था जो प्यार उ दिखावा था। राम बोले में बड़ा बेटा जमीन से लेकर मा बाप तक सारे कार्य में में कियु अकेले खर्चा करुन्गा? शाम कियु नेहि खर्चा करेगा? में किया अकेला पैदा हुआ? सारे जिमेदार उठाने केलिये!
बच् जब मा के कोक् में रहता है तब मा कभी बोलते नेहि जिस कोक में दश मेहने रहा इस कोक का लालन पालन खर्चा दो! पेट से काट के जब खाना खिलाते तब नेहि कहते हमारे भूक का किमत दो। जब मा बाप दोनों फटे कपड़े पेहन के आछे कपड़े पेहनाते तब कहते है बचे आछे पेहन्गे तब हमको शकुन मिलेगा। आछे नाम कमायेन्गे तो हमारा नार उज्जवल होगा।
जब उलाद बडे़ होते इतने आछे घर करने के बाद माता पिता को रखने केलिये स्थान नेहि हे। चाहे जिताना कियु ना रुपया कमाते खर्चा करने उनके केलिये खर्चा करने में हाथ काम्पता हे। आखिर में सोचते हे मा बाप कि जितने पैत्रुक् सम्पति हे हम लेकर बृद्धा आश्रम छोड़ के हम सकुन के सांस लेन्गे।उर हमारे बीबी बचे के साथ आराम की ज़िन्दगी बितान्गे।
परन्तु कभी सोचते नेहि हमारे भी ऐसे एक दिन आएगा उर जिस बटवारा सोच रख के लढ़ते है हम भी कभी ऐसे एक दिन बटवारा के चेन में घिसट जाएन्गे।राम ने बोला में अकेला नेहि बेटा शाम ने किया देखता हे? इतने लढ़ना झिगड़ने कि कुई जरूरत नेहि दोन के पास मा बाप रेहन्गे। मेरे पास मा शाम के पास पिता रुकेन्गे।
कहते है जबानी के प्यार जिसम से आकर्षित होता हे बूढ़ा पे आत्मा से बन्ध जाता हे। इस उमर में उनको अलग रखने से उनके आत्मा अन्दर ही अन्दर रोएगा। मा को रखने से बीबी के काम में हात बटाएगा बाप रखने से बैठ के खाएन्गे। उहि सोच बचे में देख के पति प्रम कुमार पत्नी प्रिया निर्णय लिये जमीन के हिस्से के तरा बटवारा होने से आछा हे!
जमीन घन दौलत देके दोनों बृद्धा आश्रम चला जाएन्गे जहाँ पे सकुन के सांस लेन्गे। बूढ़ा पे उलाद कितने साहारा देते हम देखलिये। बचे ना होने के बजाय कितने ताने सुन् रहेथे। जब हौआ तो बटवारा के जन्जिर में घिसट रहे है। हमारे फरबरिस में कहाँ कमी रेह गेया? कभि ऐसे दिन रब ना करे ।उर हो गया तो तब जानेन्गे हिस्सा किया होता है? तुम से देख के तुमारे बचे ना सिखे?आछे सोच रखेन्गे तब आछे फल फलेगा।
मा बाप को जिस उलाद जमीन के हिस्सा की तरा बटवारा सोचते हैं उहाँ पे मा बाप कैसे सकुन के सांस लेन्गे? उस उलाद के भविष्य में केसे उज्ज्वला आएगा? उमिद कि किरन आने का हौसला रख के मा बाप उलाद पेदा करते। आखिर में आंसू देने से जिन्देगी श्राप बनता हे। सोच उन्चें फल भी एक दिन उन्चीं पद देता हे। कुई सक् नेहि!
शान्ति लता परिड़ा